ऐसो गति करो नन्दलाल।
गंगा जमुना जल मुखमांहि, कण्ठ तुलसीका माल॥०१॥
महाप्रसाद नित भोजन होवे, पादोदक सोहे भाल॥०२॥
सन्ध्या पूजन सतसंग मिले नित, कीर्तन धुन करताल॥३॥
अजपा सांस ब्यर्थ नहीं जावे, मिट जावे जग जाल॥०૪॥
“छत्रधर” नाम सहज होई जावे, अन्त मिलो गोपाल॥०५॥
श्रीशुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी
श्रीशुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी ॐ मङ्गलाचरणम् वन्दे सिद्धिप्रदं देवं गणेशं प्रियपालकम् । विश्वगर्भं च विघ्नेशं अनादिं मङ्गलं विभूम् ॥ अथ ध्यानम् -...
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