हे री जब ते श्याम निहारे कुंजन को।
नव नव सुमन खिले सब बृक्षन, नित नवीन पुष्पन को॥०१॥
कुसुम गुच्छ निज हाथ लिये हरि, तरसत भानुलली दरसन को॥०२॥
इत उत देखत दौरि चलत कहूं, न धीर देत नयनन को॥०३॥
जगत छोरि जगदीश धावलै, भानुसुता हरषन को॥०૪॥
ऐसो उदार नन्दलाल “छत्रधर”, जनमि लिये जग जनम दहन को॥०५॥
श्रीशुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी
श्रीशुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी ॐ मङ्गलाचरणम् वन्दे सिद्धिप्रदं देवं गणेशं प्रियपालकम् । विश्वगर्भं च विघ्नेशं अनादिं मङ्गलं विभूम् ॥ अथ ध्यानम् -...
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