
हे री जब ते श्याम निहारे कुंजन को।
हे री जब ते श्याम निहारे कुंजन को।
नव नव सुमन खिले सब बृक्षन, नित नवीन पुष्पन को॥०१॥
कुसुम गुच्छ निज हाथ लिये हरि, तरसत भानुलली दरसन को॥०२॥
इत उत देखत दौरि चलत कहूं, न धीर देत नयनन को॥०३॥
जगत छोरि जगदीश धावलै, भानुसुता हरषन को॥०૪॥
ऐसो उदार नन्दलाल “छत्रधर”, जनमि लिये जग जनम दहन को॥०५॥