
ऐसो गति करो नन्दलाल।
ऐसो गति करो नन्दलाल।
गंगा जमुना जल मुखमांहि, कण्ठ तुलसीका माल॥०१॥
महाप्रसाद नित भोजन होवे, पादोदक सोहे भाल॥०२॥
सन्ध्या पूजन सतसंग मिले नित, कीर्तन धुन करताल॥३॥
अजपा सांस ब्यर्थ नहीं जावे, मिट जावे जग जाल॥०૪॥
“छत्रधर” नाम सहज होई जावे, अन्त मिलो गोपाल॥०५॥