
हरि मेरो हरो ज्ञान अभिमान
हरि मेरो हरो ज्ञान अभिमान।
कोई बात सुनो नहीं जब लौं, होय न करूणा गान॥०१॥
सोई धन छिन लेहू यदुनन्दन, बिस्मृत रहे भगवान्॥०२॥
ज्ञान मान सब झार निकालहु, चलतो अन्तिम प्रान॥०३॥
बेद पुरान को तत्व न चाहि, केवल पदपद्मन् ध्यान॥०૪॥
“छत्रधर” सब जग जोरि मैं राख्यो, केवल हितु भगवान्॥०५॥