कुछ याद रहे कुछ भुला दिए

कुछ याद रहे कुछ भुला दिए

कुछ याद रहे कुछ भुला दिए

हम प्रतिक्षण बढ़ते जाते हैं,
हर पल छलकते जाते हैं,
कारवां पीछे नहीं दिखता,
हर चेहरे बदलते जाते हैं।

हर पल का संस्मरण लिए,
कुछ धरे, कुछ विस्मृत किए,
अनगिनत शब्दों को सजाकर
कुछ याद रहे कुछ भुला दिए।

कितने पगडंडी पर चले,
कितने उपवन, डगर मिले,
कितने रंगों के पुष्प खिले
कुछ याद रहे कुछ भुला दिए।

कितनी अनछुई यादें,
कितने दर्द, कितनी फरियादें,
कितने मेले, कितने मरघट
कुछ याद रहे कुछ भुला दिए।

कितने रिश्ते नातों को,
कितने लोगों की बातों को,
चमकते दिन, अंधेरी रातों को,
कुछ याद रहे कुछ भुला दिए।

कितने दौर, सवालों को,
कितने भावुक उबालों को,
मेहनत, पांव के छालों को
कुछ याद रहे कुछ भुला दिए।

कुछ स्नेहसुधा करुणा ममता,
कुछ रंगबिरंग, कमता, समता,
समृद्ध समय, सबसे खंगता
कुछ याद रहे कुछ भुला दिए।

बस एक रहा अनछुआ यहां,
कुछ मिला नहीं कुछ हुआ यहां,
मैं का मैं न, मैं बदल सका,
कोई एक राह नहीं चल सका,

एक ढांचे में नहीं ढल सका,
बचपन जवानी बुढ़ापा बना,
अपरिवर्तित किंचित गल न सका।
बस इसी जगह मैं कह न सका
कुछ याद रहे कुछ भुला दिए।

पं. छत्रधर शर्मा

वह कौन?

वह कौन?

वह कौन?
जो नित्य, साश्वत, शुद्ध-बुद्ध।
निरस्पृह, निर्मम और प्रतिक्षण संशुद्ध।
जल पवन अग्नि आकाश धरा से पृथक्।
तन्मात्रायें, तत्व, अन्त:करण गति अथक्।
वेद संवेद मानाभिमान।
नाम रूप रंग प्रत्याभिमान।
शुक्ष्म स्थूल दृश्यादृश्य।
हृदयस्थ सर्वत्र स्पृश्याश्पृश्य॥
नित्य पुरातन भेदाभेद।
जागृत सुसुप्त तुरियावेद॥
समग्रावस्थाऽरूढ़गतिमान्।
गेयाज्ञेय स्पन्दितवान्॥
यत्र तत्र सर्वत्र बिखरे,
केवल उसका ही उच्छ्वास।
अन्त मध्य आरम्भ कहां?
भास विभास विरोधाभास॥
तर्क्यातर्क अनुमान प्रमाण,
कुटस्थ तटस्थ चिद्भासस्वरूप।
“छत्रधर” सेवा भक्ति समर्पण
से मिलते रघुनाथ अरूप॥

Copy न करें, Share करें।