सामगानां सन्ध्या प्रयोग

सामगानां सन्ध्या प्रयोग

।। ऊँ श्रीभास्कराय नमः ।।
।। श्रीगणेशाय नमः।।
अथ सामगानां सन्ध्या प्रयोग

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प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर, शुद्ध स्थान पर आसनी बिछाकर, आचमनी, पंचपात्र, अर्घा, माला एवं फूल, जल एकत्र करके सन्ध्या प्रारम्भ करे। – आसनी में पूर्व मुख बैठे।
– कुश या आचमनी से निम्न मन्त्रों से अपने मस्तक पर जल छिड़के।
ऊँ शन्न आपो धन्वन्याः समनः सन्तु नूप्याः। शन्वः समुद्रिया आपः शमनः सन्तु कूप्याः।। 1।।
ऊँ द्रूपदादिव मुमूचानः स्विन्नः स्नातो मलादिव । पूतं पवित्रेणे वाज्यमापः शुन्धन्तु मैनसः ।। 2।।
ऊँ आपो हिष्ठा मयो भुवस्तान ऊर्जे दधातनः महेरणाय चक्षसे।। 3।।
ऊँ यो वः शिव तमोरसस्तस्य भाजय ते ह नः। उशतीरिव मातरः।। 4।।
ऊँ तस्म्मा अरंग मामवो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः।। 5।।
ऋतं च सत्यं चाभिद्धात्तपसोऽध्यजायत ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रोऽर्णवः।
समुद्रादर्णवादधिऽसंवत्सरोऽजायत अहोरात्राणिविदधद्विश्वस्यमिशतो वशी सूर्या चन्द्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत दिवं च पृथिवीन्चान्तरिक्षमथो स्वः।। 6।।
– पवित्रीकरणम् निम्न मंत्र से मस्तक पर जल छिड़कें।
हरिः ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वाऽवस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरःशुचिः।।
– शिखाबंधनम् एक आचमनी जल लेकर विनियोग पढ़कर पात्र में छोड़े।
ऊँ मानस्तोके इति मंत्रस्य कुत्स ऋषि: जगती छन्दः एको रूद्रो देवता शिखा बन्धने विनियोगः।।
ऊँ मानस्तोके तनये मानऽआयुषि मानो गोषु मानोऽअश्वैषुरीरिष:।
मानोवीरान्रूद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्तः सदमित्वा हवामहे।। (हाथ धोकर पोंछ लें।)
– भस्मधारणम् (जल लेकर पढ़े) विनियोग।
ऊँ त्र्यम्बकमिति मंत्रस्य वशिष्ठ ऋषि: अनुष्टुप्छन्दः रूद्रो देवता भस्म धारणे विनियोगः।।
मंत्रः-ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम् ।। उर्वारूकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
– आचमनम्ः- (निम्न मंत्रों से 3 बार जल पीये।)
ऊँ केशवाय नमः।। ऊँ माधवाय नमः।। ऊँ नारायणाय नमः।। (हाथ धोते हुए) ऊँ गोविन्दाय नमः कहे।
– आसन शुद्धिः- ऊँ पृथ्वीति मंत्रस्य मेरूपृष्ठ ऋषि: सुतलं छन्दः कूर्मो देवता आसनोपवेशने विनियोगः।।
(निम्न मंत्र से आसन का स्पर्श करें।)
मंत्रः- ऊँ पृथ्वि ! त्वया धृता लोका देवी ! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रं कुरू चासनम्।।10।।
संकल्पः- (एक आचमनी जल लेकर संकल्प पढ़े।)
हरिः ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्विष्णुः प्रजापति क्षेत्रे नमः पुराण पुरूषोत्तमाय नमः श्रीश्वेत वाराह कल्पे सप्तम वैवश्वत
मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भारतवर्षे भरतखंडे आर्यावर्तैक देशे अस्मिन् वर्तमाने वर्तमानानां (…..नाम) संवत्सरे ….. मासे……पक्षे…. तिथौ….नक्षत्रे… वासरे अद्य….. गोत्रोत्पन्नोहं….. शर्माहं ममोपात्त दुरितक्षयार्थ ब्रह्मवर्चस कामार्थ श्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थ प्रातः/मध्यान्ह/सायं संध्योपासनमहं करिष्ये ।।
पुनः हाथ जोड़कर निम्न मंत्र पढ़े।
ऊँ नत्वाऽथपुण्डरीकाक्षं उपात्ताद्य प्रशान्तये। ब्रह्मवर्चस कामार्थ प्रातः/मध्यान्ह/सायं संध्यामुपास्महे।।12।।
प्राणायामः- (जल लेकर विनियोग करें।)
ऊँ कारस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छन्दोऽग्निर्देवता सर्वकर्मारम्भे विनियोगः।।1।।
ऊँ सप्तव्याहृतीनां प्रजापतिः ऋषि: गायत्री उष्णिक् अनुष्टुप वृहतीपंक्तित्रिष्टुप जगत्यस्छन्दांस्यऽअग्नि वायुसूर्य बृहस्पति
वरूणेन्द्र विश्वे देवा देवताः प्राणायामे विनियोगः।।2।।
ऊँ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता प्राणायामे विनियोगः।।3।।
ऊँ शिरसः प्रजापतिः ऋषि: ब्रह्माग्निवायु सूर्याश्चतस्त्रो देवताः प्राणायामे विनियोगः।।4।।
प्राणायामविधिः- (दाहिने हाथ के अंगुठे से नाक के दाहिने छिद्र को बंद करके) बांये (नाक) छिद्र से श्वास खींचते हुए, नेत्र बंद करके नाभिकमल में ‘रक्तवर्णवाले ब्रह्माजी’ का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र को मन ही मन जपें।
मंत्र- ऊँ भूः ऊँ भूवः ऊँ स्वः ऊँ महः ऊँ जनः ऊँ तपः ऊँ सत्यं ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।।
ऊँ आपो ज्योतिरसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्।। (इति पूरक)।।
पुनः अनामिका कनिष्ठा से नाक के बाँये छिद्र को बंद करके स्वाँस रोके हुए हृदय में ‘नीलकमल के समान श्याम चतुर्भूज भगवान विष्णुजी’ का ध्यान करते हुए ऊपरोक्त मंत्र को जपें।। (इति कुम्भक)।। पुनः अंगुठे को धीरे से हटाकर क्रमश: दाहिने नाक छिद्र से छोड़ते हुए मस्तक में विराजमान श्वेतवर्ण वाले भगवान शिवजी का ध्यान करते हुए उपराक्तानुसार मंत्र को जपें।। (इति रेचक)।।
प्रातः आचमनम्- (जल लेकर विनियोग करें।)
ऊँ सूर्यश्चमेति मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: प्राकृतिश्छन्दः आपो देवता आचमने विनियोगः।
मंत्र- ऊँ सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्यु पतयश्च मन्यु कृतेभ्यः पापेभ्योरक्षन्ताम्।
यद्रात्र्या पापमकार्शं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यां उदरेणशिश्ना रात्रिस्तदव लुम्पतु।।
यत्किचिददुरितं मयि इदमहममृत योनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा।। 14।।
मध्यान्ह-आचमन- आपः पुनन्त्विति नारायण ऋषिरनुष्टुप्छन्दः आपः पृथिवी ब्रह्मणस्पतिब्रह्म च देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः।
मन्त्र- ऊँ आपः पुनन्तु पृथिवीं पृथिवी पूता पुनातु माम्। पुनन्तु ब्रह्मणस्पतिब्रह्मपूता पुनातु माम्। यदुच्छिष्टमभोज्यं यद्वा दुश्चरितं मम। सर्वं पुनन्तु मामापोऽसतां च प्रतिग्रहँ स्वाहा।।
सायं-आचमन- अग्निश्चमेति नारायण ऋषि: प्रकृतिश्छन्दोऽग्निमन्युमन्युपतयोऽहश्च देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः।
मन्त्र- ऊँ अग्निश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम्। यदह्ना पापमकार्शं मनसा वाचा हस्ताभ्यां
पद्भ्यामुदरेण शिश्ना अहस्तदवलुम्पतु। यत्किन्च दुरितं मयि इदमहं माममृतयोनौ सत्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा।।
मार्जनम्- (जल लेकर विनियोग करें।)
ऊँ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषि: गायत्री छन्दः सविता देवता मार्जने विनियोगः।। 1।।
ऊँ आपोहिष्ठेति ऋक् त्रयस्य सिन्धु द्वीप ऋषि: गायत्री छन्दः आपो देवता आपो मार्जने विनियोगः।।
(सिर में जल सींचे।)
ऊँ भूः ऊँ भुवः ऊँ स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियोयोनः प्रचोदयात्।।15।।
(पुनः सिर में जल सींचे।)
ऊँ आपो हिष्ठामयोभुवः ।। 1।। ऊँ तान ऊर्जे दधातनः ।। 2।। ऊँ महेरणाय चक्षसे ।। 3।।
ऊँ यो वः शिवतमोरसः।। 4।। ऊँ तस्य भाजयतेह नः ।। 5।। ऊँ उशतीरिव मातरः ।। 6।।
ऊँ तस्मा अरंग मामवः ।। 7।। ऊँ यस्य क्षयाय जिन्वथ ।। 8।। (भूमि में जल सींचे।)
ऊँ आपो जनयथाच नः ।। 9।। (पुनः सिर में जल सींचे।)
अघमर्षणम्-(जल लेकर विनियोग करें।)
ऊँ ऋतं चेत्यस्य अघमर्षण ऋषिरनुश्टुप्छन्दो भाववृत्तो देवता अघमर्षणे विनियोगः।।
(दाहिने हाथ को गौ के कान के सदृश सटाकर रखे, जल भर के नासिका के अग्रभाग से लगाये हुए मंत्र पढ़े।)
ऊँ ऋतं च सत्यं चा भीद्धात्तपसोऽध्यजायत ।। ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रोऽर्णवः।। समुद्रादर्णवादधि संवत्सरोऽजायत
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्यमीशतो वशी सूर्या चन्द्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत् दिवं च पृथ्विन्चान्तरिक्ष मथो स्वः।। 16।।
(हाथके जल को बिना देखे अपने बाये दिशा में डाल कर हाथ धो लेवे।)
सूर्य अर्घ्य दानम् – प्रातः कुछ झुक एक एड़ी उठा खड़े होकर तीन बार/मध्यान्ह में एक एड़ी उठा खड़े होकर एक बार/ सायं बैठकर तीन
बार।
-यदि समय (प्रातः सूर्योदय से तथा सूर्यास्त से तीन घड़ी बाद) का अतिक्रमण हो जाये तो प्रायश्चित् स्वरूप नीचे लिखे मन्त्र से एक अर्घ्य
पहले देकर तब उक्त अर्घ्य दें-
– ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।। ऊँ भूर्भुवः स्वः ऊँ।
-(जल लेकर विनियोग करें।) ऊँ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषि: गायत्री छन्दः सविता देवता सूर्यार्घदाने विनियोगः।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियोयोनः प्रचोदयात्।। ब्रह्मस्वरूपिणे सूर्यनारायणाय नमः।।
सूर्योपस्थानम्- प्रातः खड़े होकर सामने अंजली बनाकर /मध्यान्ह में खड़े होकर दोनों हाथ उठाकर / सायं बैठकर मुठ्ठी बांधकर सुर्योपस्थान करें।
-(जल लेकर विनियोग करें।)
ऊँ उदुत्यमित्यस्य प्रश्कण्व ऋषि: गायत्री छन्दः सूर्योदेवता तथा च चित्रमित्यस्य कौत्स ऋषि: त्रिष्टुप्छन्दः सूर्योदेवता सूर्योपस्थाने
विनियोगः।
-ऊँ उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशेविश्वाय सूर्यम्।।1।।
ऊँ चित्रं देवानामुदगादनिकं चक्षुर्मित्रस्य वरूणस्याग्नेः।। आप्राद्यावा पृथिवींश्चान्तरिक्षँ सूर्ये आत्मा जगतस्तस्थुषश्च।।2।।
गायत्री आवाहनम्- (हाथ जोड़े हुए निम्न मन्त्रों को पढ़ते हुए गायत्री का ध्यान करें।)
ध्यानम्- हंसस्कन्ध समारूढ़ा तथा च ब्रह्म देवता। कुमारी ऋग्वेदमुखी ब्राह्मणा सह आवह।।
पंचवक्त्रां दशभुजां सूर्यकोटिसमप्रभाम्। सावित्रीं ब्रह्मवरदां चन्द्रकोटि सुशीतलाम्।।
त्रिनेत्रां सितवक्त्रां च मुक्ताहार विराजिताम्। पराभयांकुशकशापानपात्राक्षमालिकाः।।
शंखं चक्राब्जयुगुलं कराभ्यां दधतीं पराम्। सितपंकजसंस्थां च हंसारूढा सुखस्मिताम्।।
आवाहनम्- ऊँ आयाहि वरदे देवि त्रयक्षरेब्रह्मवादिनि। गायत्री छन्दसामातब्रह्मयोनिः नमोस्तुते ।।
(गायत्री देवी का पंचोपचार मानसिक पूजन करें।)
(ऊँ गायत्री देव्यै नमः स्नानं, गन्धम्, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि। )
गायत्रीन्यासम्- (निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए षरीर का स्पर्ष करें। )-
ऊँ हृदयाय नमः (हृदय)।।1।। ऊँ भूः शिरसे स्वाहा (मस्तक)।।2।। ऊँ भुवः शिखायै वषट् (शिखा)।।3।। ऊँ स्वः कवचाय
हुम् (स्कन्ध)।।4।। ऊँ भूर्भुवः स्वः नेत्राभ्यां वौषट् (नेत्र)।।5।। ऊँ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट् (ताली)।।6।।
ब्रह्मवशिष्ठविश्वामित्रशुक्र शाप विमोचन- हाथ जोड़कर
अहो देवि महादेवि सन्ध्ये विद्ये सरस्वति।
अजरे अमरे चैव ब्रह्मयोनि नमोऽतुते।।
या देवि रक्तवर्णा सा पीतवर्णा शुभानना।
गायत्री शुभ्रवर्णा च शापमुक्ता सदा भवेत्।।
देवि गायत्री त्वं ब्रह्मवशिष्ठविश्वामित्रशुक्र शापाद् विमुक्ता भव।।
मुद्रा- सुमुखं सम्पुटं चैव विततं विस्तृतं तथा। द्विमुखं त्रिमुखं चैव चतुश्पंचमुखं तथा ।।
षण्मुखाऽधो मुखं चैव व्यापकांजलिकं तथा। शकटं यम पाशं च ग्रथितं चोन्मुखोन्मुखम् ।।
प्रलम्बं मुष्टिकं चैव मत्स्यः कूर्मो वराहकम्। सिंहाक्रान्तं महाक्रान्तं मुद्गरंपल्लवं तथा।।
एता मुद्राश्चतुर्विंशज्जपादौ परिकीर्तिताः।।

24 mudra
गायत्री मंत्र जापम्- (जल लेकर विनियोग करें।)
ऊँ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषि: गायत्री छन्दः सविता देवता जपोपनयने विनियोगः।
(गोमुखी में माला ढककर मन ही मन 108 बार गायत्री मंत्र का भक्ति श्रद्धापूर्वक जाप करें।)


जपार्पणम्-(जप पूरा होने पर आचमनी में जल एवं माला दाहिने हाथमें रखकर निम्न वाक्य पढ़कर जल कोपरी में छोड़ देवे।)
अनेन गायत्री जप कर्मणा भगवान् नारायण प्रीयतां न मम्।।
अष्ट मुद्रा- सुरभि ज्ञान वैराग्यं योनिः शंखोऽथ पंकजम्।
लिंगंनिर्वाणमुद्राश्च जपान्तेऽष्टौ प्रदर्शयेत् ।।

08 mudra
गायत्री विसर्जनम्- (जल लेकर निम्न मंत्र पढ़कर गायत्रीदेवीको प्रणाम करें।)
ऊँ महेश्वर वरदोत्पन्ना विष्णोर्हृदय संभवा। ब्राह्मणा समनुज्ञाता गच्छ देवी यथेच्छया।।
(पुनः आचमनीमें जल लेकर पढ़े।) अनेन जलेन भगवन्तौ आदित्य शुक्रौ प्रीयेताम्।।
आत्म रक्षा- (जल लेकर विनियोग करें।)
ऊँ जातवेदसेति मंत्रस्य काश्यपऋषि: त्रिष्टुप्छन्दोऽग्निर्देवता आत्म रक्षायं विनियोगः।।
(दाहिने हाथके अंगुठेके मूलमें अनामिकाको लगाकर हृदयसे लगाये हुए निम्न मंत्रको पढ़े।)
ऊँ जात वेदसे सुनवाम सोमम राती यतो निदहाति वेदः।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नात्रैव सिन्धु दुरितात्यऽग्नि:।।
(केवल हाथ जोड़े।)
ऊँ ऋतं सत्यं परं ब्रह्म पुरूषं कृष्णपिंगलम्। उर्ध्वलिंगं विरूपाक्षं विश्वरूपं नमो नमः।।
पुनः विनियोग- ऊँ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषि: गायत्री छन्दः सविता देवता आत्म रक्षायं विनियोगः।
अंजली में जल लेकर गायत्री से अभिमंत्रित कर चारो तरफ जल घुमाकर एक बार ताली बजा दें।
सूर्यार्घ्य- (अर्घामें जल फूल रखकर मंत्र पढ़कर कोपरीमें डाल देवें।)
ऊँ नमो विवस्वते ब्रह्मन् भास्वते विष्णु तेजसे। जगत्सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मदायिने।। इदमर्घ्यं सूर्याय नमः।।
(हाथ जोड़े हुए अपने स्थानपर घूमकर प्रदक्षिणा करें।)
ऊँ नमः सवित्रे जगदेक चक्षुषे जगत्प्रसूति स्थिति नाश हेतवे। त्रयी मयाय त्रिगुणात्म धारिणे विरन्चि नारायण शंकरात्मने।।
भगवान् श्रीसूर्यनारायणाय नमः।।
कर्म समर्पण- (जल लेकर मंत्र पढ़ै।) ऊँ अनेन सन्ध्योपासनाख्येन कर्मणा श्रीपरमेश्वरः प्रीयतां न मम्।। (जल छोड़े।)
मृत्तिका ललाटे धारणम्- (आसनके नीचे जल डालकर अनामिकासे मस्तक पर मिट्टी लगावें।)
पुनः हाथ जोड़कर पढ़ें-
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपो यज्ञ क्रियादिषु। न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ।।
ऊँ श्रीविष्णवेनमः।। श्रीविष्णवेनमः।। श्रीविष्णवेनमः।।।।
इति सामगानां सन्ध्या प्रयोगः।।

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