
श्रीगुढियारीहनुमत्स्तुतिः
॥श्रीगुढियारीहनुमत्स्तुतिः॥
गुढियारीपुरे भातं, रायपुरस्य भूषणम्।
छत्तीसगढ़जनाधारं, तं कपीन्द्रं नमाम्यहम्॥
यस्य सान्निध्यमात्रेण, क्लेशा नश्यन्ति देहिनाम्।
दयानिधिं महाकायं, नौमि तं कार्यसाधकम्॥०१॥
भावार्थ:
जो गुढ़ियारी नगर में विराजमान हैं, रायपुर नगर के आभूषण हैं, छत्तीसगढ़ के लोगों के आधार हैं, उन वानरश्रेष्ठ हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ।
जिनकी केवल उपस्थिति मात्र से ही प्राणियों के समस्त क्लेश (दुःख) नष्ट हो जाते हैं, उन दया के सागर, विशाल शरीर वाले और सभी कार्यों को सिद्ध करने वाले हनुमान जी को मैं नमन करता हूँ॥०१॥
अञ्जनाकुक्षिसम्भूतं, मारुतस्यौरसं सुतम्।
केसरिक्षेत्रजं देवं, गुढियार्यां तमाश्रये॥
रामपादाब्जमिलिन्दं, लङ्कादाहविचक्षणम्।
स मां रक्षेत् सदा भक्त्या, स्मृतो यः सर्वसिद्धिदः॥०२॥
भावार्थ:
जो माता अंजना के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं, पवनदेव के औरस (वैध) पुत्र हैं, केसरी के क्षेत्रज (पुत्र के समान) देव हैं, गुढ़ियारी में विराजमान उन हनुमान जी की मैं शरण लेता हूँ।
जो श्रीराम के चरणकमलों के भ्रमर (अनन्य भक्त) हैं, लंकादहन करने में परम चतुर हैं, वे हनुमान जी, जिनका स्मरण करने मात्र से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, भक्तिपूर्वक मेरी सदैव रक्षा करें॥०२॥
सङ्कटे च भये घोरे, भक्तानां यस्तु रक्षकः।
गुढियार्यां स्थितो देवः, स मे दिशतु मङ्गलम्॥
दुष्टदैत्यमदध्वंसी, साधुवृन्दस्य पालकः।
तं प्रपद्ये हनुमन्तं, रायपुरहितैषिणम्॥०३॥
भावार्थ:
संकट के समय और भयानक भय उपस्थित होने पर जो भक्तों के रक्षक हैं, गुढ़ियारी में स्थित वे देव मुझे मंगल (कल्याण) प्रदान करें।
दुष्ट दैत्यों के अहंकार को नष्ट करने वाले, साधु-संतों के समूह के पालक, रायपुर का हित चाहने वाले उन हनुमान जी की मैं शरण ग्रहण करता हूँ॥०३॥
ज्ञानावतारं प्रवरं, बले वीर्ये च संयुतम्।
छत्तीसगढ़धरापृष्ठे, योऽवति भक्तमण्डलम्॥
यस्य पादारविन्दं हि, ध्यायन्तो लभते शुभम्।
गुढियारीपते तुभ्यं, नमोऽस्तु प्रज्ञाप्रदायक॥०૪॥
भावार्थ:
जो ज्ञान के श्रेष्ठ अवतार हैं, बल और पराक्रम से सम्पन्न हैं, छत्तीसगढ़ की धरती पर जो भक्तजनों की रक्षा करते हैं।
जिनके चरणकमलों का ध्यान करने से निश्चय ही शुभ की प्राप्ति होती है, हे गुढ़ियारी के स्वामी, हे प्रज्ञा (उत्तम बुद्धि) प्रदान करने वाले, आपको मेरा नमस्कार है॥०૪॥
काञ्चनाद्रिनिभं दिव्यं, वज्रदंष्ट्रं महाभुजम्।
गुढियार्यां प्रकाशन्तं, स्तुम श्रीरामकिङ्करम्॥
यस्य नामापि सङ्कीर्त्य, विलयं यान्ति चापदः।
भजेऽहं हृदये नित्यं, रायपुरस्थं महौजसम्॥०५॥
भावार्थ:
स्वर्ण पर्वत (सुमेरु) के समान कांतिमान, दिव्य स्वरूप वाले, वज्र के समान दाढ़ों वाले, विशाल भुजाओं वाले, गुढ़ियारी में प्रकाशमान श्रीराम के सेवक हनुमान जी की मैं स्तुति करता हूँ।
जिनका नामोच्चारण करने मात्र से ही सारी विपत्तियाँ विलीन हो जाती हैं, रायपुर में स्थित उन महान तेजस्वी हनुमान जी का मैं अपने हृदय में नित्य भजन करता हूँ॥०५॥
मारुतात्मज हे प्राज्ञ, शीघ्रकार्यविधायक।
गुढियारीनिलयस्त्वं भो, भक्ताभीष्टप्रपूरक॥
यस्य स्मरणतो नॄणां, मतिर्भवति निर्मला।
तं नमामि महासत्त्वं, छत्तीसगढ़सुखप्रदम्॥०६॥
भावार्थ:
हे पवनपुत्र, हे परम ज्ञानी, शीघ्र ही कार्यों को सिद्ध करने वाले! हे गुढ़ियारी में निवास करने वाले, आप भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं।
जिनके स्मरण मात्र से मनुष्यों की बुद्धि निर्मल हो जाती है, उन महान शक्तिशाली, छत्तीसगढ़ को सुख प्रदान करने वाले हनुमान जी को मैं नमन करता हूँ॥०६॥
यथा राघवकार्यार्थं, कृतवान् दुष्करं पुरा।
तथैव भक्तकार्याणि, साधय त्वं कृपानिधान॥
गुढियारीपुरीमध्ये, वसन् कारुण्यसागरः।
पाहि नः सर्वदा देव, रायपुरजनप्रिय॥०७॥
भावार्थ:
जैसे आपने पूर्वकाल में श्री रामचन्द्र जी के कार्य के लिए अत्यंत दुष्कर कार्य किये थे, वैसे ही हे कृपा के भंडार, आप भक्तों के कार्यों को भी सिद्ध करें।
हे गुढ़ियारी नगरी के मध्य में निवास करने वाले करुणा के सागर, हे रायपुर के जनों के प्रिय देव, आप सदैव हमारी रक्षा करें॥०७॥
आर्तानामार्तिहरणं, दीनानां परमां गतिम्।
गुढियारीहनूमन्तं, भजेऽभीष्टफलप्रदम्॥
यस्य दर्शनतः सद्यः, चित्तं शान्तिमुपैति हि।
तं वन्दे पवनापत्यं, छत्तीसगढ़मनोहरम्॥०८॥
भावार्थ:
दुखियों के दुःख को हरने वाले, दीनों के लिए परम आश्रय, अभीष्ट (मनचाहा) फल प्रदान करने वाले गुढ़ियारी के हनुमान जी का मैं भजन करता हूँ।
जिनके दर्शन मात्र से चित्त को शीघ्र ही शांति प्राप्त होती है, उन पवनपुत्र, छत्तीसगढ़ के मन को हरने वाले हनुमान जी की मैं वंदना करता हूँ॥०८॥
कलिकल्मषनाशाय, धृतदिव्यवपुर्भुवि।
गुढियार्यां जनानां त्वं, प्रत्यक्षोऽसि कृपाकरः॥
रायपुरक्षेत्रभक्तानाम्, आशास्त्वयि प्रतिष्ठिताः।
ताः सर्वाः पूरय स्वामिन्, त्राहि मां शरणागतम्॥०९॥
भावार्थ:
कलियुग के पापों का नाश करने के लिए पृथ्वी पर दिव्य शरीर धारण करके, हे कृपा करने वाले, आप गुढ़ियारी में लोगों के समक्ष प्रत्यक्ष रूप से विराजमान हैं।
रायपुर क्षेत्र के भक्तों की सभी आशाएँ आप पर ही टिकी हुई हैं। हे स्वामी, उन सभी को पूर्ण कीजिये और मुझ शरणागत की रक्षा कीजिये॥०९॥
गुढियारीपतेर्नाम, यः कीर्तयति भक्तितः।
स लभेत सुखैश्वर्यं, रोगशोकविवर्जितः॥
आयुर्विद्यां यशः कीर्तिं, सुतपौत्रादिसम्पदम्।
प्रयच्छति कपिश्रेष्ठः, छत्तीसगढ़कृपार्णवः॥१०॥
भावार्थ:
जो कोई भक्तिपूर्वक गुढ़ियारी के स्वामी हनुमान जी के नाम का कीर्तन करता है, वह रोग और शोक से रहित होकर सुख तथा ऐश्वर्य प्राप्त करता है।
वानरों में श्रेष्ठ, छत्तीसगढ़ पर कृपा के सागर हनुमान जी उसे आयु, विद्या, यश, कीर्ति तथा पुत्र-पौत्र आदि संपत्ति प्रदान करते हैं॥१०॥
छत्तीसगढ़प्रदेशस्य, श्रेयः समृद्धिमेव च।
वर्धय त्वं कृपासिन्धो, गुढियारीपुरनायक॥
जय वीर जय श्रीरामप्रिय, रायपुरजनावन।
अञ्जनानन्दवर्धन, पाहि मां कृपया प्रभो॥११॥
भावार्थ:
हे कृपासिन्धु, हे गुढ़ियारीपुर के नायक! आप छत्तीसगढ़ प्रदेश के कल्याण और समृद्धि को बढ़ाएँ।
हे वीर हनुमान आपकी जय हो, हे श्रीराम के प्रिय आपकी जय हो, हे रायपुर के लोगों के रक्षक, हे माता अंजना के आनंद को बढ़ाने वाले! हे प्रभो, कृपा करके मेरी रक्षा करें॥११॥
छत्रधरशर्मणा कृतं, स्तोत्रमेतत् सुखावहम्।
ये पठिष्यन्ति मनुजा, भक्त्या नित्यं समाहिताः॥
तेषां सर्वाः कामनाः स्युः, सफला नात्र संशयः।
श्रीहनुमत्प्रसादेन, लभन्ते परमां गतिम्॥१२॥
भावार्थ:
(पंडित) छत्रधर शर्मा द्वारा रचित यह सुख प्रदान करने वाला स्तोत्र, जो भी मनुष्य भक्तिपूर्वक, एकाग्रचित्त होकर नित्य पढ़ेंगे,
उनकी सभी कामनाएँ निःसंदेह सफल होंगी और श्री हनुमान जी की कृपा से वे परम गति (मोक्ष) को प्राप्त करेंगे॥१२॥
।। इति पं.छत्रधरशर्मणा कृतं श्रीगुढियारीहनुमत्स्तुतिः सम्पूर्णा ।।