वह कौन?
जो नित्य, साश्वत, शुद्ध-बुद्ध।
निरस्पृह, निर्मम और प्रतिक्षण संशुद्ध।
जल पवन अग्नि आकाश धरा से पृथक्।
तन्मात्रायें, तत्व, अन्त:करण गति अथक्।
वेद संवेद मानाभिमान।
नाम रूप रंग प्रत्याभिमान।
शुक्ष्म स्थूल दृश्यादृश्य।
हृदयस्थ सर्वत्र स्पृश्याश्पृश्य॥
नित्य पुरातन भेदाभेद।
जागृत सुसुप्त तुरियावेद॥
समग्रावस्थाऽरूढ़गतिमान्।
गेयाज्ञेय स्पन्दितवान्॥
यत्र तत्र सर्वत्र बिखरे,
केवल उसका ही उच्छ्वास।
अन्त मध्य आरम्भ कहां?
भास विभास विरोधाभास॥
तर्क्यातर्क अनुमान प्रमाण,
कुटस्थ तटस्थ चिद्भासस्वरूप।
“छत्रधर” सेवा भक्ति समर्पण
से मिलते रघुनाथ अरूप॥
श्रीशुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी
श्रीशुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी ॐ मङ्गलाचरणम् वन्दे सिद्धिप्रदं देवं गणेशं प्रियपालकम् । विश्वगर्भं च विघ्नेशं अनादिं मङ्गलं विभूम् ॥ अथ ध्यानम् -...
बहुत सुंदर पंडित जी 🙏🙏.
अदभुत कृति………👌👌